हुस्न-ए-हिजाब-आश्ना जानिब-ए-बाम आ गया बादा-ए-तह-नशीन-ए-जाम ता लब-ए-जाम आ गया आप ने फेंक दी नक़ाब गर्मी-ए-इश्क़ देख कर हश्र-नवाज़ हुस्न आज हश्र के काम आ गया मिल्लत-ए-कुफ़्र-ओ-दीं की बहस गर्म थी ख़ानक़ाह में इतने में कोई मय पिए दस्त-ब-जाम आ गया शौक़ का ए'तिबार क्या यास ये इख़्तियार क्या राह-ए-उम्मीद-ओ-बीम में दिल का मक़ाम आ गया दिल मिरा देखता रहा और मेरी ज़बान पर लज़्ज़त-ए-जान-ए-आरज़ू आप का नाम आ गया दहर जवान हो गया खुल गया मय-कदे का दर साक़ी-ए-मस्त मस्त-ए-नाज़ मस्त-ए-ख़िराम आ गया जल्वा-ए-बे-हिजाब को ख़ूब समझ रहा हूँ मैं महशर-ए-दीद मुंतज़िर मंज़र-ए-आम आ गया 'कैफ़ी'-ए-बे-क़रार सुन ये रग-ए-जाँ के साज़ से है मिरी इल्तिजा क़ुबूल दिल का पयाम आ गया