हुस्न-ए-परी इक जल्वा-ए-मस्ताना है उस का हुश्यार वही है कि जो दीवाना है उस का गुल आते हैं हस्ती में अदम से हमा-तन-गोश बुलबुल का ये नाला नहीं अफ़्साना है उस का गिर्यां है अगर शम्अ तो सर धुनता है शोला मालूम हुआ सोख़्ता-परवाना है उस का वो शोख़ निहाँ-गंज की मानिंद है उस में मामूरा-ए-आलम जो है वीराना है उस का जो चश्म कि हैराँ हुई आईना है उस की जो सीना कि सद चाक हुआ शाना है उस का दिल क़स्र-ए-शहंशह है वो शोख़ उस में शहंशाह अर्सा ये दो आलम का जिलौ ख़ाना है उस का वो याद है उस की कि भुला दे दो जहाँ को हालत को करे ग़ैर वो याराना है उस का यूसुफ़ नहीं जो हाथ लगे चंद दिरम से क़ीमत जो दो आलम की है बैआना है उस का आवरगी-ए-निकहत-ए-गुल है ये इशारा जामे से वो बाहर है जो दीवाना है उस का ये हाल हुआ उस के फ़क़ीरों से हुवैदा आलूदा-ए-दुनिया जो है बेगाना है उस का शुकराना-ए-साक़ी-ए-अज़ल करता है 'आतिश' लबरेज़ मय-ए-शौक़ से पैमाना है उस का