हुस्न-ए-शोख़-चश्म में नाम को वफ़ा नहीं दर्द-आफ़रीं नज़र दर्द-आश्ना नहीं नंग-ए-आशिक़ी है वो नंग-ए-ज़िंदगी है वो जिस के दिल का आईना तेरा आईना नहीं आह उस की बे-कसी तू न जिस के साथ हो हाए उस की बंदगी जिस का तू ख़ुदा नहीं हैफ़ वो अलम-नसीब जिस का दर्द तू न हो उफ़ वो दर्द-ए-ज़िंदगी जिस की तू दवा नहीं दोस्त या अज़ीज़ हैं ख़ुद-फ़रेबियों का नाम आज आप के सिवा कोई आप का नहीं अपने हुस्न को ज़रा तू मिरी नज़र से देख दोस्त! शश-जहात में कुछ तिरे सिवा नहीं बे-वफ़ा ख़ुदा से डर ताना-ए-वफ़ा न दे 'ताजवर' में और ऐब कुछ हों बे-वफ़ा नहीं