आई उदास रात सहर चश्म-ए-तर गई वो क्या गए कि रौनक़-ए-शाम-ओ-सहर गई यूँ तो हरीम-ए-नाज़ पे सब की नज़र गई लेकिन ज़माने भर की बला मेरे सर गई रिश्ता ख़ुशी का ग़म से कभी टूटता नहीं ग़म मेरे पास है तो ख़ुशी उस के घर गई मेरे लहू से रंग-ए-गुलिस्ताँ निखर गया मेरे जुनूँ के फ़ैज़ से दुनिया सँवर गई मैं खो गया हूँ गर्दिश-ए-दौराँ में इस तरह ये भी ख़बर नहीं कि जवानी किधर गई हाथों से छूट छूट गया दामन-ए-ख़याल काफ़िर निगाह छोड़ के ऐसा असर गई हुस्न-ए-जुनूँ-नवाज़ की दिलदारियाँ 'नज़ीर' जल्वे मचल रहे थे जहाँ तक नज़र गई