इबादत के लिए बस रब नहीं है मोहब्बत से बड़ा मज़हब नहीं है मैं सूरज हूँ मुझे ढलना ही होगा मिरे हिस्से में कोई शब नहीं है जो कहना चाहती हूँ तुम वो समझो मिरी बातों का वो मतलब नहीं है ये कैसा शहर है जागे है शब-भर यहाँ जीने का कोई ढब नहीं है नज़र क्या मिल गई उस की नज़र से तमन्ना दिल में कोई अब नहीं है बहुत मुश्किल है जीना ज़िंदगी का कला है ये कोई कर्तब नहीं है जिरह में सब के सब उलझे हुए हैं किसी की बात का मतलब नहीं है