इब्तिदा हर इक ख़ुशी की इंतिहा-ए-ग़म से है ताज़गी-ए-ग़ुंचा-ओ-गुल गिर्या-ए-शबनम से है हादसात-ए-दहर में शामिल रहा किस का लहू सुर्ख़-रूई बाग़-ए-आलम की हमारे दम से है अपने मय-ख़्वारों को साक़ी मस्त नज़रों की पिला रौनक़-ए-बज़्म-ए-मसर्रत दौर-ए-जाम-ए-जम से है मुश्किलें कितनी भी हों मंज़िल पे पहुँचेंगे ज़रूर कामयाबी की तवक़्क़ो कोशिश-ए-पैहम से है हम से ही वाबस्ता है 'अख़्तर' बहार-ए-रंग-ओ-बू हुस्न की नाज़-आफ़रीनी आशिक़ी के दम से है