इब्तिदा कितनी मोहब्बत की हसीं होती है ज़िंदगी ख़्वाब पे माइल-ब-यक़ीं होती है आतिश-ए-रश्क से जलता है दिल-ए-दर्द-नवाज़ कोई उफ़्ताद अगर और कहीं होती है अस्ल ईमाँ है मोहब्बत जिसे क़िस्मत से मिले कौन कहता है कि ये दुश्मन-ए-दीं होती है करवटें दर्द बदलता है ख़ुदा ख़ैर करे एक कसक और नई दिल के क़रीं होती है 'अश्क' आँखों में हैं गर अहल-ए-मोहब्बत की तो क्या चोट लगती है जहाँ टीस वहीं होती है