लौ दे उठा चराग़-ए-तमन्ना बुझा हुआ गुज़रा ये आज कौन इधर देखता हुआ ये हादसात भी तो गुज़रने ज़रूर थे ऐ इश्क़ क्यूँ उदास है जो कुछ हुआ हुआ वो रंग क्या हुए वो बहारें किधर गईं ऐ हम-सफ़ीर सारा चमन है लुटा हुआ यूँ आज बे-क़रार है दुनिया-ए-आरज़ू जिस तरह तिलमिलाए कोई दिल दुखा हुआ क्यूँ आज बज़्म-ए-ज़ीस्त में बे-कैफ़ियाँ सी हैं ऐ हुस्न तेरी मस्त-निगाही को क्या हुआ गिर्दाब-ए-ग़म है और मिरी कश्ती-ए-उमीद फिर बहर-ए-ज़िंदगी में है तूफ़ाँ उठा हुआ अपना पता न जादा-ए-मंज़िल की कुछ ख़बर ख़ुद मिट गया हूँ 'नक़्श' उन्हें ढूँढता हुआ