इधर रहा हूँ उधर रहा हूँ कहीं नहीं हूँ मगर रहा हूँ ये कैसी आवाज़ आ रही है ये किस जगह से गुज़र रहा हूँ ये कैसा ख़दशा लगा हुआ है ये कौन है किस से डर रहा हूँ हज़ारों सूरज बुझे पड़े हैं मैं अपने अंदर उतर रहा हूँ लहू की बू सूँघते हैं कुत्ते हवा पे इल्ज़ाम धर रहा हूँ कहाँ छुपे हो बताओ 'अल्वी' तलाश बरसों से कर रहा हूँ