है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम लज़्ज़त-ए-दश्ना-ए-बदनाम तुम्हें क्या मा'लूम तुम ने देखी है फ़क़त मेरी परेशाँ-हाली मुझ पे क्या क्या हुए इकराम तुम्हें क्या मा'लूम हैरती हो के उठाए हुए दिल फिरते हैं इस के लग जाने का अंजाम तुम्हें क्या मा'लूम जज़्बा-ए-ख़्वाहिश-ओ-एहसास की इस बाज़ी में कौन हो जाएगा नाकाम तुम्हें क्या मा'लूम देखते हो मुझे पर-बस्ता तो हँस देते हो है यहाँ कौन तह-ए-दाम तुम्हें क्या मा'लूम वक़्त का रंग बदलते नहीं देखा तुम ने सूरत-ए-गर्दिश-ए-अय्याम तुम्हें क्या मा'लूम मौसम-ए-मेहर के दो-चार बरस देखे हैं सख़्ती-ए-मौसम-ए-आलाम तुम्हें क्या मा'लूम