ये मो'जिज़ा भी किसी की दुआ का लगता है ये शहर अब भी उसी बेवफ़ा का लगता है ये तेरे मेरे चराग़ों की ज़िद जहाँ से चली वहीं कहीं से इलाक़ा हवा का लगता है दिल उन के साथ मगर तेग़ और शख़्स के साथ ये सिलसिला भी कुछ अहल-ए-रिया का लगता है नई गिरह नए नाख़ुन नए मिज़ाज के क़र्ज़ मगर ये पेच बहुत इब्तिदा का लगता है कहाँ मैं और कहाँ फ़ैज़ान-ए-नग़्मा-ओ-आहंग करिश्मा सब दर-ओ-बस्त-ए-नवा का लगता है