यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे लोग यूँ देख के हँस देते हैं तू मुझे भूल गया हो जैसे इश्क़ को शिर्क की हद तक न बढ़ा यूँ न मिल हम से ख़ुदा हो जैसे मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ मुझ पे एहसान किया हो जैसे ऐसे अंजान बने बैठे हो तुम को कुछ भी न पता हो जैसे हिचकियाँ रात को आती ही रहीं तू ने फिर याद किया हो जैसे ज़िंदगी बीत रही है 'दानिश' एक बे-जुर्म सज़ा हो जैसे