इज़्ज़त मुझे मिली है बहुत इल्तिजा के बाद दर पे गया न ग़ैर के रब की अता के बाद अच्छा हुआ कि आरज़ू पूरी नहीं हुई निखरी हमारी ख़्वाहिशें अपनी क़ज़ा के बाद करने लगेंगे राह में जुगनू भी रौशनी सूरज जो डूब जाएगा ख़त्म-ए-ज़िया के बाद हर बे-वफ़ा ने आशियाँ अपना बदल दिया तन्हा रहा हूँ शहर में ज़िक्र-ए-वफ़ा के बाद पानी पे मैं ने मार के पत्थर समझ लिया डूबेंगे अहल-ए-ज़ुल्म भी जौर-ओ-जफ़ा के बाद होंगे हज़ार क़िस्म के अंजुम तो क्या हुआ तब भी फ़लक न चाहिए माँ की रिदा के बाद 'इरफ़ान' वो तो ख़ुल्द में करने लगे सफ़र मस्जिद की ओर आए जो फ़र्श-ए-अज़ा के बाद