इज़्हार-ए-जुनूँ बर-सर-ए-बाज़ार हुआ है दिल दस्त-ए-तमन्ना का गिरफ़्तार हुआ है बेहोश-ए-गुनह जो दिल-ए-बीमार हुआ है इक शौक़-ए-तलब सा मुझे तलवार हुआ है सहरा-ए-तमन्ना में मिरा दिल तुझे पा कर शहर-ए-हवस-आलूद से बेज़ार हुआ है बेहोश-ए-ख़िरद को जुनूँ आगाह करेगा ये जज़्ब जो आमादा-ए-पैकार हुआ है मैं वस्ल की शब रक़्स-ए-ग़म-आमेज़ करूँगी इक दर्द मिरा हम-शब-ए-बेदार हुआ है इस दर्जा नशा कब है कि गुमराह रहूँ मैं ये होश मिरा दुश्मन-ए-दुश्वार हुआ है टूटी है ये कश्ती तो मिरे साथ सफ़र को वो जान-ए-मसाफ़त मिरा तय्यार हुआ है इस ख़ूबी-ए-क़िस्मत पे मुझे नाज़ बहुत है वो शख़्स मिरी जाँ का तलबगार हुआ है मैं आईना-ए-दिल को सर-ए-ख़्वाब ही तोड़ूँ इस दश्त-ए-शनासा का ये इसरार हुआ है कुछ काम कब आया है मिरा गिर्या-ए-शब भी इसराफ़-ए-दिल-ओ-जाँ मिरा बे-कार हुआ है