इक आह-ए-ज़ेर-ए-लब के गुनहगार हो गए अब हम भी दाख़िल-ए-सफ़-ए-अग़्यार हो गए जिस दर्द को समझते थे हम उन का फ़ैज़-ए-ख़ास उस दर्द के भी लाख ख़रीदार हो गए जिन हौसलों से मेरा जुनूँ मुतमइन न था वो हौसले ज़माने के मेयार हो गए साक़ी के इक इशारे ने क्या सेहर कर दिया हम भी शिकार-ए-अंदक-ओ-बिस्यार हो गए अब उन लबों में शहद ओ शकर घुल गए तो क्या जब हम हलाक़-ए-तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार हो गए हर वादा जैसे हर्फ़-ए-ग़लत था सराब था हम तो निसार-ए-जुरअत-ए-इंकार हो गए तेरी नज़र पयाम-ए-यक़ीं दे गई मगर कुछ ताज़ा वसवसे भी तो बेदार हो गए इस मय-कदे में उछली है दस्तार बार-हा वाइज़ यहाँ कहाँ से नुमूदार हो गए सरसब्ज़ पत्तियों का लहू चूस चूस कर कितने ही फूल रौनक़-ए-गुलज़ार हो गए 'ज़ैदी' ने ताज़ा शेर सुनाए ब-रंग-ए-ख़ास हम भी फ़िदा-ए-शोख़ी-ए-इंकार हो गए