इक आलम-ए-हैरत है फ़ना है न बक़ा है हैरत भी ये हैरत है कि क्या जानिए क्या है सौ बार जला है तो ये सौ बार बना है हम सोख़्ता-जानों का नशेमन भी बला है होंटों पे तबस्सुम है कि इक बर्क़-ए-बला है आँखों का इशारा है कि सैलाब-ए-फ़ना है सुनता हूँ बड़े ग़ौर से अफ़्साना-ए-हस्ती कुछ ख़्वाब है कुछ अस्ल है कुछ तर्ज़-ए-अदा है है तेरे तसव्वुर से यहाँ नूर की बारिश ये जान-ए-हज़ीं है कि शबिस्तान-ए-हिरा है