इक बरहना बोलता इज़हार है मेरा चेहरा सुब्ह का अख़बार है आगे पीछे चल रहा है दम-ब-दम एक मेरा साया मेरा यार है पाँव के नीचे है शो'लों की ज़मीं और सर पे सोच की तलवार है बे-लिबासी पैराहन पे ख़ंदा-ज़न बे-हयाई एक कारोबार है किस तरफ़ को जाए 'राही' आदमी हर क़दम सरहद है या दीवार है