इक बिखरते आशियाँ की बात है इक शिकस्ता साएबाँ की बात है मेरे माथे के निशाँ की बात है उन के संग-ए-आस्ताँ की बात है दर्द-ओ-ग़म के क़ाफ़िले का ज़िक्र है अश्क की मौज-ए-रवाँ की बात है रूह का रिश्ता है ये तेरा मिरा ये भला कब जिस्म-ओ-जाँ की बात है लोग जो कहते हैं तुम को बेवफ़ा तुम बताओ ये कहाँ की बात है ज़ख़्म भर कर फिर हरे कैसे हुए बस कफ़-ए-चारा-गराँ की बात है सच वही है जो अभी मैं ने कहा बाक़ी ज़ेब-ए-दास्ताँ की बात है