मुझ से बाज़ी ले गया फिर बा-ख़ुदा मेरा नसीब मैं सिसकता रह गया हँसता रहा मेरा नसीब ज़िंदगी के नाम पर जब ज़िंदगी मुझ को मिली इम्तिहाँ-दर-इम्तिहाँ लिक्खा गया मेरा नसीब मैं तो रिश्तों की तमाज़त से झुलस कर रह गया और उस पर तीर की सूरत लगा मेरा नसीब क्या समझता मैं भला महदूद हूँ अपने तईं कि सज़ा है या किसी की बद-दुआ' मेरा नसीब हसरतों ने ला के फेंका जब मुझे बाज़ार में बोलियाँ लगती रहीं बिकता रहा मेरा नसीब चाक पर कूज़ा-गरी के बा'द उस ख़त्तात ने हाथ की उलझी लकीरों पर लिखा मेरा नसीब जब कहीं घेरा ग़मों की आँधियों ने बा-ख़ुदा दलदलों में ले के मुझ को गिर पड़ा मेरा नसीब कब तलक पीता रहूँ ऐ ज़िंदगी मैं जाम-ए-ग़म कब तलक मुझ से रहे का यूँ ख़फ़ा मेरा नसीब इक क़दम मैं ने उठाया तोड़ कर ज़ंजीर-ए-पा बिछ गया काँटों की सूरत जा-ब-जा मेरा नसीब है सबब मौज-ए-'नसीमी' की रवानी का यही दस्तरस में जो नहीं मेरे ख़ुदा मेरा नसीब