इक दर्द का अनमोल-रतन साथ है मेरे ख़ुश हूँ कि कोई जीने का फ़न साथ है मेरे सदियों से है आवारगी-ए-शौक़ सफ़र में मीलों की मसाफ़त की थकन साथ है मेरे उड़ती नहीं क्यों जाने पसीने की ये शबनम सूरज की तो एक एक किरन साथ है मेरे हर शीशे में चेहरा नज़र आता नहीं यारो ये सच है कि इक आइना-तन साथ है मेरे बनती हुई सूरत भी बिगड़ जाए है 'अंजुम' लहजे का वो बे-साख़्ता-पन साथ है मेरे