इक फ़क़त ख़ुद से गिला बाक़ी रहा वर्ना इस दिल में तो क्या बाक़ी रहा इक तरफ़ तेरी कमी खलती रही इक तरफ़ अपना ख़ला बाक़ी रहा राह की आसानियाँ जाती रहीं मंज़िलों का मरहला बाक़ी रहा ज़िंदगी-दर-ज़िंदगी चलती रही मसअला-दर-मसअला बाक़ी रहा हम हद-ए-इदराक से मजबूर थे हम से जो था मावरा बाक़ी रहा हो रहेंगे हम भी उस के एक दिन हाँ अगर दिल में ख़ुदा बाक़ी रहा शहर-ए-दिल के बा-वफ़ा जब खो गए आख़िरश इक बे-वफ़ा बाक़ी रहा दिल से तेरी याद भी रुख़्सत हुई और अब क्या मो'जिज़ा बाक़ी रहा ऐ दिल-ए-नाकाम कुछ तो कर गुज़र या अभी कुछ सोचना बाक़ी रहा