इक हुस्न-ए-सरापा है मेरे यार ग़ज़ल में आशिक़ न करे क्यों तिरा दीदार ग़ज़ल में इंकार में मख़मूर निगाहों का असर है हर शे'र नज़र आता है सरशार ग़ज़ल में अब मेरे तसव्वुर में नहीं कोई अंधेरा बिखरे हैं तिरे हुस्न के अनवार ग़ज़ल में अशआ'र में अब सिर्फ़ सियासत की ही बातें कम हो गया ज़िक्र-ए-लब-ओ-रुख़्सार ग़ज़ल में रुस्वा कोई हो जाएगा 'परदेसी' समझ ले अच्छा नहीं यूँ इश्क़ का इज़हार ग़ज़ल में