इक महकते गुलाब जैसा है ख़ूब-सूरत से ख़्वाब जैसा है मैं उसे पढ़ती हूँ मोहब्बत से उस का चेहरा किताब जैसा है बे-यक़ीनी ही बे-यक़ीनी है हर समुंदर सराब जैसा है मैं भटकती हूँ क्यूँ अंधेरों में वो अगर आफ़्ताब जैसा है डूबती जाए ज़ीस्त की नाव हिज्र लम्हा चनाब जैसा है मैं हक़ाएक़ बयान कर दूँगी ये गुनह भी सवाब जैसा है चैन मिलता है उस से मिल के मगर चैन भी इज़्तिराब जैसा है अब 'शबाना' मिरे लिए वो शख़्स एक भूले निसाब जैसा है