इक नींद की वादी से गुज़ारा गया मुझ को By Ghazal << घुट के रह जाऊँगा बे-एहसास... वो आ गए हैं बुग़्ज़ का जज... >> इक नींद की वादी से गुज़ारा गया मुझ को फिर ख़्वाब की दहलीज़ पे मारा गया मुझ को दिल हूँ सो किसी चश्म के एहसान हैं सारे हाथों से बनाया न सँवारा गया मुझ को रख दी गई पहले मिरे सीने में वो ख़ुशबू फिर इश्क़ के रंगों से निखारा गया मुझ को Share on: