वो आ गए हैं बुग़्ज़ का जज़्बा लिए हुए हम से मुसालहत का इरादा लिए हुए है सामने फ़क़ीर के शाहों का ऐसा हाल सर्वत खड़ी है हाथ में कासा लिए हुए हम ढूँडते हैं रहबर-ए-कामिल को हिन्द में हुस्न-ए-अमल का क़ल्ब में जज़्बा लिए हुए हैं ख़ुश्क-सालियाँ कहीं जानों में इक वबाल बारिश कहीं है क़हर का नक़्शा लिए हुए मक़बूलियत हो ऐसी कि तुम कूच जब करो हर शख़्स आए हाथ में तमग़ा लिए हुए होता गया तबादला 'ऐनी' नगर नगर हर जा मैं पहुँचा प्यार का तोहफ़ा लिए हुए