इक रिवायत है जो तब्दील नहीं कर सकता मैं तिरे हुक्म की तामील नहीं कर सकता रेग-ए-मक़्तल है न तलवार न नेज़ा है यहाँ तू मिरे शौक़ की तकमील नहीं कर सकता रात गुज़री तो ये उक़्दा भी खुला है मुझ पर मैं तुझे शेर में तमसील नहीं कर सकता तुझ पे गुज़री हो क़यामत तो समझ भी आए तू मिरे हिज्र की तावील नहीं कर सकता लाख 'आसिम' वो मिरी ज़ात के टुकड़े कर दे मैं किसी शख़्स की तज़लील नहीं कर सकता