इक सदाक़त है बे-रग-ओ-बे-पय तेरी मुट्ठी में बंद है जो शय मेरे मुँह पर गुलाल मलता है बोलता क्यों नहीं लहू की जय नाचता है कि लर्ज़ा-बर-अंदाम कोई सुर-ताल है न कोई लय हो सके तो समेट कर रख ले मेरे साए से और इतना भय किस लिए तेरे मेरे बीच अब तक दोस्ती की ख़लीज हाइल है