इक सफ़र पर उसे भेज कर आ गए ये गुमाँ है कि हम जैसे घर आ गए वो गया है तो ख़ुशियाँ भी सारी गईं शाख़-ए-दिल पर ख़िज़ाँ के समर आ गए लाख चाहो मगर फिर वो रुकते नहीं जिन परिंदों के भी बाल-ओ-पर आ गए हम तो रस्ते पे बैठे हैं ये सोच कर जो गए थे अगर लौट कर आ गए उस से मिल के भी कब उस से मिल पाए हम बीच में ख़्वाहिशों के शजर आ गए उस ने उस पार अपना बसेरा किया हम ने दरिया को छोड़ा इधर आ गए एक दुश्मन से मिलने गए थे मगर इक मोहब्बत के ज़ेर-ए-असर आ गए