सुख की बोहतात है ज़िंदगी ज़ख़्म दे मेरा दुख बाँट कर फिर कोई ज़ख़्म दे जुस्तुजू फिर कोई दिल में रस्ता बना फिर से नाकामियों का वही ज़ख़्म दे रौशनी हो नज़र-दर-नज़र रौशनी इक कमी है कमी-दर-कमी ज़ख़्म दे गुम-शुदा चाहतों का वज़ीफ़ा पढ़ा बोलते मंज़रों की गली ज़ख़्म दे तू मुझे ज़िंदगी का क़रीना सिखा मुझ पे एहसान कर दिल-लगी ज़ख़्म दे दर्द का ज़ाइक़ा भूल बैठा हूँ मैं ऐसा कर तू मुझे इस घड़ी ज़ख़्म दे नुत्क़-ए-'आदिल' की शीरीनी कम हो ज़रा तल्ख़ी-ए-हिज्र की बेकली ज़ख़्म दे