इक तही-दस्त से क्या क्या तन-ए-फ़ानी माँगे साया-ए-ज़ीस्त में है नक़्ल-ए-मकानी माँगे पैकर-ए-नाज़ से दिल ईज़ा-रसानी माँगे अक़्ल हैरान है ये कैसी गिरानी माँगे आरज़ू मेरी अभी मिस्र के बाज़ार में है ये ज़ुलेख़ा न कहीं यूसुफ़-ए-सानी माँगे और कुछ मुझ को दिखाई न पड़े ऐसा नहीं हाँ मिरी आँख फ़क़त जल्वा-ए-जानी माँगे आसमाँ सुर्ख़ हुआ गर्म नदी सूखी हुई तिश्ना मौसम है मिरे जिस्म से पानी माँगे 'बद्र' आसाँ नहीं शाइ'र का ग़ज़ल-ख़्वाँ होना ये नहीं जादू मगर जादू-बयानी माँगे