इक़रा की सौग़ात की सूरत आ होंटों पर आयात की सूरत आ सूख चले हैं आँगन के पौदे बे-मौसम बरसात की सूरत आ शाख़-ए-यक़ीं की बे-समरी और मैं बार-आवर शुबहात की सूरत आ मैं पर्वर्दा तीरा-बख़्ती का मेरे घर तो रात की सूरत आ मैं अपनी तहदीद में हूँ मशग़ूल आ तौसी-ए-ज़ात की सूरत आ फ़िक्र के तीरा-ख़ाने रौशन कर लौ देते जज़्बात की सूरत आ रास आए मुझ को उजियाले कब मुबहम इम्कानात की सूरत आ