रंज-ए-गिरान-ए-शौक़ का हासिल न कह इसे तर्क-ए-सफ़र किया है तू मंज़िल न कह इसे ये ज़ब्त ज़ब्त-ए-ग़म नहीं इक बे-दिली सी है ये दिल हरीफ़-ए-दर्द नहीं दिल न कह इसे तुग़्यानीयाँ कुछ और हैं मौजों में रेत की मैं डूबता हूँ इशरत-ए-साहिल न कह इसे मरता नहीं हूँ मौत की बे-हासिली पे मैं जीता अगर हूँ उल्फ़त-ए-हासिल न कह इसे मिलना सफ़र का और बिछड़ना सफ़र का है दुनिया तो रहगुज़ार है महफ़िल न कह इसे