इक़रार ही के साथ ये इंकार अभी से दिल तोड़ते हो क्यों मिरा पैमाँ-शिकनी से हर इक को है अब उन्स उसी बुत की गली से वीरान हुईं मस्जिदें सूने हैं कलीसे बोसा ही मुझे दो जो नहीं वस्ल पे राज़ी अच्छा है वही काम जो हो जाए ख़ुशी से वाइ'ज़ जो पता ख़ुल्द का पूछे तो बता दूँ जन्नत की तरफ़ जाते हैं उस बुत की गली से बाज़ आओ बुतो अपनी जफ़ाओं से ख़ुदा-रा तोड़ो न मिरा शीशा-ए-दिल तंग-दिली से तुम आज ज़रूर आओगे लेकिन ये बता दो सच्चा कोई इक़रार किया भी है किसी से पूरा करे अल्लाह मिरे दिल का इरादा मर कर भी न उठ्ठूँ बुत-ए-काफ़िर की गली से वाइ'ज़ ये बरसते हुए बादल ये घटाएँ मैं बच नहीं सकता कभी तौबा-शिकनी से मैं किस से 'फहीम' और कहूँ हाल-ए-ग़म अपना अल्लाह है आगाह मिरे दर्द-ए-दिली से