इल्तिफ़ात-आश्ना हिजाब तिरा लुत्फ़-ए-पिन्हाँ है इज्तिनाब तिरा क्या मिला है मआल-ए-बेदारी मेरी आँखें हैं और ख़्वाब तिरा दिल से करता हूँ लाख लाख सवाल याद आता है जब जवाब तिरा कोई देखे तुझे तो क्या देखे कि तिरा हुस्न है नक़ाब तिरा हाए उन लग़्ज़िशों की रा'नाई ढूँढता है जिन्हें इ'ताब तिरा इशरत-ए-दिल थी दिल की बर्बादी टूट कर बन गया रबाब तिरा किस से पूछें कि अब कहाँ है 'रविश' हाए वो ख़ानुमाँ-ख़राब तिरा