लाख एहसास तेरा कुश्ता-ए-हालात रहे तिरे होंटों पे शगुफ़्ता सी कोई बात रहे तू ने हर दौर में उल्टी है बिसात-ए-आलम आज ये आख़िरी बाज़ी भी तिरे बात रहे ये भी मिलना है कि बस मिल के बिछड़ जाते हैं लुत्फ़ तो जब है कि इक उम्र मुलाक़ात रहे काएनात उन के लिए एक सराब एक ख़याल जो निगहबान-ए-हरम महव-ए-ग़म-ए-ज़ात रहे यूँ सर-ए-बज़्म कोई नग़्मा-ए-जावेद सुना कि तिरे बा'द भी महफ़िल में तिरी बात रहे क्या अजब एक ही मंज़िल हो हमारी ऐ दोस्त राह कट जाएगी दोनों का अगर सात रहे अपना शेवा कि जलाते हैं अँधेरों में चराग़ उन की साज़िश कि ज़माने में यूँही रात रहे जो लगाते रहे हर हाल पे जाँ की बाज़ी क्यूँ 'जमील' उन के मुक़द्दर में फ़क़त बात रहे