इल्ज़ाम एक ये भी उठा लेना चाहिए इस शहर-ए-बे-अमाँ को बचा लेना चाहिए ये ज़िंदगी की आख़िरी शब ही न हो कहीं जो सो गए हैं उन को जगा लेना चाहिए वो किस तरफ़ चला है लगाए कोई सुराग़ मैं किस तरफ़ रवाँ हूँ पता लेना चाहिए यानी क़िमार-ए-इश्क़ में क्या कुछ है दाव पर इस राज़-ए-वा-शगाफ़ को पा लेना चाहिए कैसा है कौन ये तो नज़र आ सके कहीं पर्दा ये दरमियाँ से हटा लेना चाहिए दिल पर जो यादगार रहे उस के मक्र की ऐसा भी कोई नक़्श बना लेना चाहिए इस तरह भी चला है कभी कारोबार-ए-शौक़ रूठे कोई तो उस को मना लेना चाहिए कीजिए न क्यूँ मुतालबा-ए-वस्ल ऐ 'ज़फ़र' की है वफ़ा तो इस का सिला लेना चाहिए