नेक आ'माल की तर्ग़ीब अमल देता है इल्म इंसान की तक़दीर बदल देता है सब को मेहनत का सिला और वो फल देता है या'नी ख़्वाबों को हक़ीक़त में बदल देता है पास है अक़्ल तुम्हारे तो ये पहले सोचो तुम शजर ऐसा लगाना कि जो फल देता है सुन के तहरीक मिले जिस से ज़माने भर को तज्रबा मुझ को मिरा ऐसी ग़ज़ल देता है अपना सर उस की इबादत में झुकाना काफ़ी राहतें दोनों जहाँ में ये अमल देता है हौसला जिस का जवाँ होता है टीपू की तरह ज़ुल्म के साँप का सर बढ़ के कुचल देता है लिखा क़िस्मत का भी वो माँ की दुआ से 'सानी' सच है ये बात कि अल्लाह बदल देता है