इन आँधियों के साथ कई घोंसले गए तुम क्या गए कि मेरे तो सब हौसले गए इक ख़्वाब मैं ने देखा था पिछले पहर कोई अगले पहर की नींद के लो सिलसिले गए इक चाँद आसमान पे इक मेरे सामने इन क़ुर्बतों में दिल के सभी फ़ासले गए हैं हिचकियाँ भी ग़म की और आहें हैं आँसू भी देखो ग़रीब-ए-शहर कि सब क़ाफ़िले गए