ख़ुद को आसान कर रही हो ना By Ghazal << हद-ए-नज़र से मिरा आसमाँ ह... इन आँधियों के साथ कई घोंस... >> ख़ुद को आसान कर रही हो ना हम पे एहसान कर रही हो ना ज़िंदगी हसरतों की मय्यत है फिर भी अरमान कर रही हो ना नींद सपने सुकून उम्मीदें कितना नुक़सान कर रही हो ना हम ने समझा है प्यार पर तुम तो जान पहचान कर रही हो ना Share on: