इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे इश्क़ भी जैसे कोई ज़ेहनी सुहुलत है मुझे मैं ने तुझ पर तिरे हिज्राँ को मुक़द्दम जाना तेरी जानिब से किसी रंज की हसरत है मुझे ख़ुद को समझाऊँ कि दुनिया की ख़बर-गीरी करूँ इस मोहब्बत में कोई एक मुसीबत है मुझे दिल नहीं रखता किसी और तमन्ना की हवस ऐसा हो पाए तो क्या इस में क़बाहत है मुझे एक बे-नाम उदासी से भरा बैठा हूँ आज जी खोल के रो लेने की हाजत है मुझे