इन दिनों तेज़ बहुत तेज़ है धारा मेरा दोनों जानिब से ही कटता है किनारा मेरा सर्द हो जाती है हर आग बिल-आख़िर इक दिन देखिए ज़िंदा है कब तक ये शरारा मेरा नफ़अ'-दर-नफ़अ' से भी क्या कभी ज़ाइल होगा रूह पर बोझ बना है जो ख़सारा मेरा है ये आलम कि नहीं ख़ुद को मयस्सर मैं भी कैसे अब होता है मत पूछ गुज़ारा मेरा यही चक्कर मुझे मरकज़ से अलग रखता है ख़ुश-नसीबी है कि गर्दिश में है तारा मेरा मेरी मजबूरी है लफ़्ज़ों में नहीं कह सकता और समझता ही नहीं कोई इशारा मेरा ख़ास नंबर कई बाक़ी हैं मुरत्तब करने है जहाँ तेरा बस इक आम इशारा मेरा लोग हैरत है समझते हैं मुझे ग़ैरत-मंद बात-बे-बात जो चढ़ जाता है पारा मेरा वो नज़र हो जो मुझे चाक ही कर डाले 'सुहैल' वर्ना खुलने का नहीं रम्ज़-ए-नज़ारा मेरा