पाएँ जो रौशनी तिरी जल्वा-गरी से हम हो लें क़रीब और भी कुछ बे-ख़ुदी से हम कर ले क़ुबूल-ए-हुस्न के सदक़े में जान-ओ-दिल फ़रियाद कर रहे हैं तिरी दिलबरी से हम ऐसा नसीब मेरा कहाँ मेरे हम-ज़बाँ कुछ देर बात करते जो हँस कर किसी से हम ऐ हुस्न मुझ को हुस्न के सदक़े की भीक दे फैलाए हाथ बैठे हैं किस आजिज़ी से हम ठुकराओ लाख मुझ को तुम्हें इख़्तियार है फिर भी न बाज़ आएँगे इस बंदगी से हम