इन ग़ज़ालान-ए-तरह-दार को कैसे छोड़ूँ जल्वा-ए-वादी-ए-तातार को कैसे छोड़ूँ दर्द-आगीं ही सही बरबत-ए-पस-मंज़र-ए-बज़्म नश्शा-हा-ए-लब-ओ-रुख़सार को कैसे छोड़ूँ ऐ तक़ाज़ा-ए-ग़म-ए-दहर मैं कैसे आऊँ लज़्ज़त-ए-दर्द ग़म-ए-यार को कैसे छोड़ूँ मैं ख़िज़ाँ में भी परस्तार रहा हूँ उस का मौसम-ए-गुल में चमन-ज़ार को कैसे छोड़ूँ ऐ मिरे घर की फ़ज़ाओं से गुरेज़ाँ महताब अपने घर के दर-ओ-दीवार को कैसे छोड़ूँ हाए दर्द-ए-दिल-ए-बेज़ार कि हंगाम-ए-ख़ुमार दोस्त कहते हैं कि मय-ख़्वार को कैसे छोड़ूँ आज तो शम्अ हवाओं से ये कहती है 'सलाम' रात भारी है मैं बीमार को कैसे छोड़ूँ