बचाओ दामन-ए-दिल ऐसे हम-नशीनों से मिला के हाथ जो डसते हैं आस्तीनों से निगार-ए-वक़्त को इतना तो पैरहन दे दो छुपा ले दीदा-ए-पुर-नम को आस्तीनों से हमारी फ़िक्र अमानत है सुब्ह-ए-फ़र्दा की समाँ है दूर का देखो न ख़ुर्द-बीनों से अब अपने ज़ख़्म-ए-जबीं को छुपा भी ले ऐ दिल टपक रहा है पसीना कई जबीनों से तुझे हवा-ए-मुख़ालिफ़ जगा दिया किस ने बहुत क़रीब था साहिल कई सफ़ीनों से न जाने मुजरिम-ए-ज़ौक़-ए-नज़र पे क्या गुज़री भरी थी राह-ए-तमाशा तमाश-बीनों से सुकूत-ए-वक़्त मुअर्रिख़ है लिख लिया उस ने जो पत्थरों ने कहा बे-ख़ता जबीनों से 'शमीम' अंजुमन-ए-अहल-ए-ज़र में क्या जाएँ लहू का रंग झलकता है आबगीनों से