इन घटाओं में उजाले का बसेरा ही सही ख़ैर अगर आप ब-ज़िद हैं तो सवेरा ही सही ऐ ग़म-ए-ज़ीस्त बुलाती हैं महकती ज़ुल्फ़ें आज की रात ये पुर-नूर अँधेरा ही सही दिल में जो आग लगी है वो कहाँ बुझती है राह शादाब सही अब्र घनेरा ही सही होशियार अहल-ए-ख़िरद ख़ाक-नशीं आ पहुँचे आप के ज़ोम का अफ़्लाक पे डेरा ही सही तू परेशान न हो ख़ालिक़-ए-फ़िरदौस-ए-बरीं ये जहन्नम ये जहाँ आज से मेरा ही सही कितनी यादें हैं कि नागिन की तरह डसती हैं 'नूर' उन गलियों का इक आख़िरी फेरा ही सही