पत्थर तमाम शहर सितमगर के हो गए जितने थे आइने वो मिरे घर के हो गए शायद कि ये ज़माना उन्हें पूजने लगे कुछ लोग इस ख़याल से पत्थर के हो गए मेहवर से उन को खींच न पाई कोई कशिश शौक़-ए-तवाफ़ में जो तिरे दर के हो गए वो अपने ला शुऊ'र से हिजरत न कर सका मेरे इरादे सात समुंदर के हो गए सफ़्फ़ाक मौसमों ने अजब साज़िशें रचीं टुकड़े हवा के हाथों गुल-ए-तर के हो गए मेरी बुलंदियों पे थी जिन की नज़र 'सुख़न' मैं ख़ुश हूँ वो मेरे बराबर के हो गए