आईं क्यों हिचकियाँ नहीं मालूम कौन है मेहरबाँ नहीं मालूम ख़ुद-बख़ुद झुक गई जबीन-ए-शौक़ किस का था आस्ताँ नहीं मालूम बे-ख़ुदी में बढ़ा रहा हूँ क़दम जा रहा हूँ कहाँ नहीं मालूम साकिन-ए-अर्श था कभी मैं भी कैसे आया यहाँ नहीं मालूम जा रहा हूँ ग़ुबार के पीछे है कहाँ कारवाँ नहीं मालूम याद इतना है बर्क़ चमकी थी क्या हुआ आशियाँ नहीं मालूम कहते कहते फ़साना ग़म का 'सईद' रुक गई क्यों ज़बाँ नहीं मालूम