आईना रू-ब-रू है शिकस्ता खड़ा हूँ मैं दुनिया समझ रही है कि सब से बड़ा हूँ मैं सदियों से इक निगाह को आँखें तरस गईं दिल को बिछाए राह में कब से खड़ा हूँ मैं लफ़्ज़ों के हेर-फेर से मा'नी बदल गया मफ़हूम-ए-ज़िंदगी पे अभी तक अड़ा हूँ मैं कुछ अपना ग़म समाज का ग़म दोस्तों का ग़म ग़म-हा-ए-बे-शुमार में तन्हा खड़ा हूँ मैं हर शख़्स आइने से यही पूछता रहा इस शहर-ए-बे-लिबास में कब से पड़ा हूँ मैं 'नश्तर' उदास रात की महरूमियों से पूछ क्यों सुब्ह-ए-दिल-नवाज़ के पीछे पड़ा हूँ मैं