आईने में चेहरा रख कर सोचूँगा मैं अब ख़ुद को तन्हा रख कर सोचूँगा दूर फ़लक से इक दिन मैं भी उभरूँगा फिर ठोकर में दुनिया रख कर सोचूँगा किस मंज़िल से मेरा रिश्ता गहरा है पाँव तले हर रस्ता रख कर सोचूँगा मेरा जुज़्व भी जैसे कुल में शामिल हो दरिया में एक क़तरा रख कर सोचूँगा यकसाँ क़द्रें 'ख़ुसरव' से 'फ़रहान' तलक सारे लहजे यकजा रख कर सोचूँगा