इंकार ही कर दीजिए इक़रार नहीं तो उलझन ही में मर जाएगा बीमार नहीं तो लगता है कि पिंजरे में हूँ दुनिया में नहीं हूँ दो रोज़ से देखा कोई अख़बार नहीं तो दुनिया हमें नाबूद ही कर डालेगी इक दिन हम होंगे अगर अब भी ख़बर-दार नहीं तो कुछ तो रहे अस्लाफ़ की तहज़ीब की ख़ुश्बू टोपी ही लगा लीजिए दस्तार नहीं तो हम बरसर-ए-पैकार सितमगर से हमेशा रखते हैं क़लम हाथ में तलवार नहीं तो भाई को है भाई पे भरोसा तो भला है आँगन में भी उठ जाएगी दीवार नहीं तो बे-सूद हर इक क़ौल हर इक शेर है 'राग़िब' गर उस के मुआफ़िक़ तिरा किरदार नहीं तो